गई वृषभानु-सुता अपने घर।
संग सखी सौं कहति चली यह, को जैहैं इनकैं दर।।
बड़ी बेर भई जमुना आए, खीझति ह्वैहै मैया।
बचन कहति मुख, हृदय-प्रेम-दुख, मन हरि लियौ कन्हैया।।
माता कहति कहाँ ही प्यारौ, कहाँ अबेर लगाई।
सूरदास तब कहति राधिका, खरिक देखि हौं आई।।677।।