क्रोध गजराज, गजपाल कीन्हौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंडमलार


क्रोध गजराज, गजपाल कीन्हौ।
गरजि घुमरात मदभार गंडनि स्रवत, पवन तै बेग तिहि समय चीन्हौ।।
चक्र सौ भ्रमत चकित भए देखि सब, चहुँधा देखियै नंदढोटा।
चमकि गए वीर सब चकाचौंधी लगी, चितै डरपे असुर घटा घोटा।।
नील अबल धौल बरन बलराम बनि, पीत अंबर स्याम अंग सोभा।
'सूर' प्रभुचरित पुरनारि देखत, महल महल पर आसिषा देति लोभा।।3055।।

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