क्रोध करि सुता सौ कहति माता।
तोहिं बरजति मरी, अचगरी सिर परी, गर्ब गंजन नाम है बिधाता।।
तोहि कछु दोष नहिं, भ्रमति तू जहाँ तहि, नदी, डोगर, बनहिं पात पाता।
मातुपितु लोक की कानि मानै नहीं, निलज भई रहति नहि लाज गाता।।
भली नहि उन करी, सीस तोकौ धरी, जगत मैं सुता तू महर ताता।
बात सुनिहै स्रवन, भई बिनही भवन, 'सूर' डारै मारि आजु भ्राता।।1971।।