क्रीड़त प्रात समय दोउ बीर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल



क्रीड़त प्रात समय दोउ बीर।
माखन माँगत, बात न मानत, झँखत जसोदा-जननी-तीर।
जननी मधि, सनमुख संकर्षन खैंचत कान्ह खस्यौ सिर-चीर।
मनहुँ सरस्वति संग उभय दुज, कल मराल अरु नील कँठीर।
सुंदर स्याम गही कवरी कर, मुक्ता माल गही बलबीर।
सूरज भष लैबे अब अपनौ, मानहुँ लेत निबेरे सीर।।161।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः