क्यौं राधा नहिं बोलति है!
काहैं धरनि परी ब्याकुल ह्वै, काहैं नैन न खोलति है!
कनक-बेलि सी क्यौं मुरझानी, क्यौं बन मांझ अकेली है!
कहां गए मनमोहन तजि कै, काहैं बिरह दुहेली है।
स्याम-नाम स्रवननि धुनि सुनि कै, सखियनि कंठ लगावति है।
सूर स्याम आए यह कहि-कहि, ऐसैं मन हरषावति है।।1108।।