क्यौ अलि गवन कियौ मथुरा, तै कहि धौ कौन विचार।
जनियत है सोई मुख मृदु छवि, देखत नंदकुमार।।
सभा समिति गुन ज्ञान ध्यान मैं, नहिं ब्रज भजन प्रकार।
यह सूच्छम पथ घोष नारि की, तुम सिर जदुकुल भार।।
कहा बूझियत प्राननाथ बिनु, सोधि बचन स्रुति सार।
सुनि सुनि मुख झूठनि के झूठनि, पढ़त बड़ौ विस्तार।।
इहाँ जोग अरु अगम अगोचर, सैलधरन आधार।
'सूरदास' सुख कहँ लौ कहिऐ, आवै अतिथि अकार।।3874।।