क्यौं राधा नहिं बोलति है -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग भैरव


क्यौं राधा नहिं बोलति है!
काहैं धरनि परी ब्याकुल ह्वै, काहैं नैन न खोलति है!
कनक-बेलि सी क्यौं मुरझानी, क्यौं बन मांझ अकेली है!
कहां गए मनमोहन तजि कै, काहैं बिरह दुहेली है।
स्याम-नाम स्रवननि धुनि सुनि कै, सखियनि कंठ लगावति है।
सूर स्या‍म आए यह कहि-कहि, ऐसैं मन हरषावति है।।1108।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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