कौन नृपति (पुनि) जाके तुम हौ।
ताकौ नाउँ सुनावहु हमकौं, यह सुनिकै अति पावति भौ।।
इहिं संसार भुवन चौदह भरि, कंसहि तैं नहिं दूजौ औ।
सो नृप कहा रहत सुनि पावैं, तब ताही कौं मानैं जौ।।
कहा नाउँ, किहिं गाउँ बसत है, ताही के ह्वै रहियै तौ।
सूरदास प्रभु कहै बनैगी, झूठहिं हमहिं कहत धौं हौ।।1578।।