को पतियाइ तुम्हारी सौहनि -सूरदास

सूरसागर

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राग बिलावल
राधा का मान





को पतियाइ तुम्हारी सौहनि।
वा तिय की अनुराग देखियत प्रगट तुम्हारी भौहनि।।
तुलसी कौ कह नीम प्रगट कियौ मोही तै करि बौहनि।
प्रात आइ मन पोषन लागे आए घालन खौहनि।।
मुँहही की हम सौ मिलवत जिय बसत जहाँ मन मोहनि।
‘सूर’ सुवस घर छाँड़ि हमारौ क्यौं रति मानत खोहनि।। 90 ।।

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