को जानै हरि चरित तुम्हारे।
अजहूँ दान नहीं तुम पायौ, मन हरि लिये हमारे।।
लेखौ करि लीजौ मन मोहन, दूध दही कछु खाहु।
सदमाखन तुम्हरेहिं मुख-लायक, लीजै दान उगाहु।।
तुम खैहौ माखन-दधि, हम सब देखि-दखि सुख पावैं।
सूर स्याम तुम अब दधि-दानी, कहि-कहि प्रगट सुनावैं।।1595।।