कोटि करौ तनु प्रकृति न जाइ।
ए अहीर वह दासी पुर की, विधिना जोरी भली मिलाइ।।
ऐसेन कौ मुख नाउँ न लीजै, कहा करौ कहि आवत मोहिं।
स्यामहिं दोष किधौ कुबिजा कौ, यहै कहौ मैं बूझति तोहिं।।
स्यामहिं दोष कहा कुबिजा को, घेरी चपल नगर उपहास।
टेढ़ी टेकि चलति पग धरनी, यह जानै दुख ‘सूरजदास’।। 3148।।