कोकिल बोली, वन वन फूले, मधुप गुँजारन लागे।
सुनि भयौ भोर, रोर बदिनि कौ, मदनमहीपति जागे।।
ते दूने अंकुर द्रुम पल्लव जे पहिले दव दागे।
मानहुँ रतिपति रीझि जाचकनि, बरन बरन दए बागे।।
नई प्रीति, नई लता, पुहुप नए, नयन नए रसपागे।
नए नेह, नव नागरि हरषित 'सूर' सुरँग अनुरागे।।2848।।