कोउ माई बोलि लेहु गोपालहिं।
मैं अपने कौ पंथ निहारति खेलत बेर भई नँदलालहिं।
टेरत बड़ी बार भई माकौं नहिं पावति घनस्याम तमालहिं।
सिध जैंवन सिरात, नँद बैठे, ल्यायहु बोलि कान्ह ततकालहिं।
भोजन करै नन्द संग मिलि कै, भूख लगी ह्वैहै मेरे बालहिं।
सूर स्याम-मग जोवती जननी, आइ गए सुनि बचन रसालहिं।।236।।