कोउ ब्रज बाँचत नाहिंन पाँती।
कत लिखि लिखि पठवत नँदनंदन कठिन बिरह की काँती।।
नैन सजल कागद अति कोमल, कर अँगुरी अति ताती।
परसै जरै, बिलोकै भीजै, दुहूँ भाँति दुख छाती।।
को बाँचै ये अंक ‘सूर’ प्रभु, कठिन मदन-सर-घाती।
सब सुख लै गए स्याम मनोहर, हमकौ दुख दै थाती।।3490।।