कैसै जीवै ऊधौ हरि परदेस रहे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


(कैसै जीवै) ऊधौ हरि परदेस रहे।
गरजि गरजि घन बरषन लागे, नदिया नार बहे।।
कहि पठयौ मधुपुरी सखी री, मेरे हुतै चरन गहै।
बासर गए निहारत मारग चातक रैनि डहै।।
कासौ कहौ तपत मन निसि दिन, को यह पीर लहै।
हमहूँ किन लै जाहिं ‘सूर’ प्रभु को ब्रज विपति सहै।।3849।।

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