किसोरी अँग अँग भेटी स्यामहिं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


किसोरी अँग अँग भेटी स्यामहिं।
कृष्न तमाल तरल भुज साखा, लटकि मिली ज्यौ दामहि।।
अचरज एक लता गिरि उपजै, सोउ दीन्हे करुनामहि।
कछुक स्यामता स्यामल गिरि की, छाई कनक अगामहि।।
गिरिवर धरन सुरत-रति-नायक, रति जीत्यौ सग्रामहि।
'सूर' कहै ये उभय सुभट बिच, क्यौ जु बसे रिपु कामहि।।2130।।

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