कियौ जिहिं काज तप घोष नारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारु


कियौ जिहिं काज तप घोष-नारी।
देहु फल हौं तुरत लेहु तुम अव घरी, हरष चित करहु दुख देहु डारी।।
रास रस रचौं, मिलि संग बिलसौ, सबै बज्र हरि कहि जो निगम बान।
हँसत मुख मुख निरखि, बचन अंमृत वरषि, कृपा-रस भरे सारंग पानी।।
ब्रज-जुवति चहुँ पास, मध्य सुंदर स्याम, राधिका बाम, अति छबि बिराजै।
सूर नव-जलद-तनु सुभग स्यामल कांति, इंदु-बहु-पाँति-विच अधिक छाजै।।1035।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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