कान्ह उठे अति प्रातही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


कान्ह उठे अति प्रातहीं, तलबेली लागी।
प्रिया प्रेम कै रस भरे, रति अंतर खागी।।
स्याम उठत अवलोकि कै, जननी तब जागी।
सुंदर बदन बिलोकि कै, अँग अँग अनुरागी।।
माता पूछति सुअन कौ, बलि गई मेरे बारे।
कहा आजु अचरज कियौ, तुम उठे सबारे।।
उत्तम जल लै प्रेम सौ, सुतवदन पखारयौ।
झारी जल, दँतुवनि दियौ, छबि पर तनु वारयौ।।
करी मुखारी अतुरई, नागरिरस छाके।
'सूर' स्याम ऐसी दसा, त्रिभुवन बस जाकै।।1965।।

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