कह फूली आवति री राधा -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


कह फूली आवति री राधा।
मानहुँ मिली अंक भरि माधौ, प्रगटत प्रेम अगाधा।।
भृकुटी धनुष नैन, सर साधे, बदन बिकास अबाधा।
चंचल चपल चारु अवलोकनि, काम नचावति ताधा।।
जिहिं रस सिव सनकादि मगन भए, सेस रहति दिन साधा।
सो रस दियौ सूर-प्रभु तोकौं, सिवा न लहति अराधा।।1696।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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