गोपी सुनहु हरि सदेस
मैं कहौ सो सत्य मानहु, सगुन डारहु नाखि।
पच वय गुन सकल देही, जगत ऐसौ भाषि।।
ज्ञान विनु नरमुक्ति नाही, यह विषय संसार।
रूप रेख, न नाम जल थल, वरन अवरन सार।।
मातु पितु कोउ नाहिं नारी, जगत मिथ्या लाइ।
'सूर' सुख दुख नही जाकै, भजौ ताकौ जाइ।।3685।।