कहियौ कपि, रघुनाथ राज सौं सादर -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
कहियौ कपि, रघुनाथ राज सौं सादर यह इक विनती मेरी।
नाहिं सही परति मोपै अब, दारुन त्रास निसाचर केरी।
यह तौ अंध बीसहूँ लोचन, छल-बल करत आनि मुख हेरी।
आइ सृगाल सिंह बलि चाहत, यह मरजाद जाति प्रभु तेरी।
जिहिं भुज परसुराम बल करष्‍यौ, ते भुज क्‍यौं न सँभारत फेरी।
सूर सनेह जानि करुनामय लेहु छुड़ाइ जानकी चेरी॥93॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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