कहा कहति तू मोहिं री माई।
नंद-नंदन मन हरि लियौ मेरौ, तब तैं मोकौं कछु न सुहाई।।
अब लौं नहिं जानति मैं, को ही, कब तैं तू मेरैं ढिग आई।
कहाँ गेह, कहहँ मातु पिता हैं, कहाँ सजन, गुरुजन कहँ भाई।।
कैसी लाज, कानि है कैसी, कहा कहति ह्वै ह्वै रिसहाई?।
अब तौ सूर भजी नंद-लालहिं, की लघुता की होइ बड़ाई।।1651।।