कहति छाँह सौ नागरी, को है तू माई।
मिली नही ब्रज गाँव मै, री कहँ तै आई।।
नाम कहा है सुंदरी, कहि सौह दिवाई।
कहौ न मेरै साध है, मुख बचन सुनाई।।
दिननि हमहुँ तुम सरबरी, तुव छबि अधिकाई।
और संग नहिं कोउ लई, यह कहि डरपाई।।
जानति हौ यह नहिं सुनी, ह्याँ की अधमाई।
अभरन लेत छंड़ाइ कै, ब्रज ढीठ कन्हाई।।
सदन जाहु मेरे कहै, पट अंग छपाई।
'सूर' स्याम जौ देखिहै, करिहैं बरियाई।।2193।।