कछु इक दिन औरौ रहौ, अब जिनि मथुरा जाहु।
परब करहु घर आपने, कुसल छेम गिरमातु।।
आठै उर उनमानि कै, रावनि कियौ गत एक।
रितुराजहि देखन चली, फूलत कुसुम अनेक।।
नवै नवल नव नागरी, नव जोबन, नव भूप।
नयौ नेह नित नाह सौं, नवसत सजै अनूप।।
दसै दसौ दिसि घोष मैं, घर पर करहिं अनंद।
नर नारी मिलि गावहीं, जरा वृंदावन नंद।।
एकादसि इक प्रीति सौं, चलीं जमुन कै तीर।
बरन बरन बनि बनि चलीं, पीत अरुन तनु चीर।।
द्वादस अभरन द्वादसी, साजि चलीं ब्रजनारि।
हरि हलधरहिं सुनावहीं, देहि नंद कौ गारि।।
तेरसि तन्मय तिय भईं, खेलत प्रीतम संग।
भरत भरावत लाजहीं, लज्जित कोटि अनंग।।
चाँदस चतुर सखी मिलीं, हलधर पकरे धाइ।
मुख माँडै छाँडै नहीं, काजर देहिं बनाइ।।