ऐसैं बसिऐ ब्रज की बीथिनि।
ग्वारनि के पनवारे चुनि-चुनि, उदर भरीजै सीथिनि।
पैंडे़ के सब बृच्छ बिराजत, छाया परम पुनीतति।
कुंज-कुंज-प्रति लोटि-लोटि, ब्रज-रस लागै रँग-रीतनि।
निसि दिन निरखि जसोदा-नंदन अरू जमुना-जल पीतनि।
परसत सूर होत तन पावन, दरसन करत अतीतनि।।490।।