ऊधौ तुम अपनौ जतन करौ।
हित की कहत कुहित की लागति, कत बेकाज ररौ।।
जाइ करौ उपचार आपनौ, हम जु कहति है जी की।
कछुवै कहत कछुक कहि आवत, धुनि दिखियत नहिं नीकी।।
साधु होइ तिहिं उत्तर दीजै, तुमसौ मानी हारि।
यह जिय जानि नंदनँदन तुम, इहाँ पठाए टारि।।
मथुरा गहौ बेगि इन पाइनि, उपज्यौ है तन रोग।
‘सूर’ सु बैद बेगि टोहौ किन, भए मरन के जोग।।3611।।