ऊधौ कहियौ जाइ राधिकहिं, तुम इतनी सी बात।
आवन दए कहौ काहे कौं फिरि पाछै पछितात।।
अब दुख मानि कहा धौ करिहौ, हाथ रहैगी गारि।
हमैं तुम्हैं अंतर है जेती, जानत है बनवारि।।
ये तौ मधुप सद्य रस भोगी, तहीं जहीं रस नीकौ।
जो रस खाइ स्वाद करि छाँड़े, सो रस लागत फीकौ।।
इक कूबर हरि हरयौ हमारौ, जगत माँझ जस लीन्हौ।