(इहि बन) मोर नही ए कामवान।
विरह खेत, धनु पुहुप, भृंग गुन, करिल तरैया रिपु समान।।
लयौ घेरि मन मृग चहुँ दिसि तै, अचुक अहेरी नहिं अजान।
पुहुप सेज घन रचित जुगल बन, क्रीड़त कैसौ वन निधान।।
महा मुदित मन मदन प्रेम रस, उमँग भरे मैमंत जान।
इही अवस्था मिलै ‘सूर’ प्रभु नाना गद दै जीव दान।। 3326।।