आजु सखो मनि-खंभ निकट हरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी



आजु सखो मनि-खंभ निकट हरि, जहँ गोरस कौं गो री।
निज प्रतिबिंब सिखावत ज्‍यौं सिसु, प्रगट करै जनि चोरी।
अरध विभाग आजु तै हम तुम, भली बनी है जोरी।
माखन खाहु कतहिं डारत हौ, छाँड़ि देहु मति भोरी।
बाँट न लेहु, सबै चाहत हौ, यहै बात है थोरी।
मीठौ अधिक, परम रुचि लागै, तौ भरि देउँ कमोरी।
प्रेम उमँगि धीरज न रह्यौ, तब प्रगट हँसी मुख मोरी।
सूरदास प्रभु सकुचि निरखि मुख, भजे कुंज की खोरी।।267।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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