आजु जसोदा जाइ कन्‍हैया -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



आजु जसोदा जाइ कन्‍हैया महा दुष्‍ट इक मारयौ।
पन्नग-रूप मिले सिसु गो-सुत इहिं सब साथ उबारयौ।
गिरि-कंदरा समान भयानक जब अध बदन पसारयौ।
निडर गोपाल पैठि मुख-भीतर खंड-खंड कर डारयौ।
याकैं बल हम बदत न काहुहिं, सकल भूमि तृन चारयौ।
जीते सबै असुर हम आगें, हरि कबहूँ नहिं हारयौ।
हरषि गए सब कहत महरि सौं, अ‍बहिं अघासुर मारयौ।
सूरदास प्रभु की यह लीला ब्रज कौ काज सँवारयौ।।433।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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