अब ये झूठहु बोलत लोग।
पाँच बरष अरु कछुक दिननि को, कब भयौ चोरी जोग।
इहिं मिस देखन आवति ग्वालिनि, मुँह फाटे जु गँवारि।
अनदोषे कौं दोष लगावतिं, दई देइगौ टारि।
कैसें करि याकी भुज पहुँची, कौन बेग ह्याँ आयौ।
ऊखल ऊपर आनि, पीठि दै, तापर सखा चढ़ायौ।
जौ न पत्याहु चलौ सँग, जसुमति देखौ नैन निहारि।
सुरदास प्रभु नैकु न बरजौ, मन मैं महरि बिचारि।।292।।