अब ब्रज नाहिंन नंद कुमार।
इहै जानि अजान मधवा, करी गोकुल आर।।
नैन जलद, निमेष दामिनि, आँसु बरषत धार।
दरस रवि-ससि दुरयौ धीरज, स्वास पवन अकार।।
उरज गिरि मैं भरत भारी, असम काम अपार।
गरज बिकल वियोग वानी, रहति अवधि अधार।
पथिक हरि सौ जाइ मथुरा, कहौ बात विचार।
सत्रु सेन सुधाम घेरयौ ‘सूर’ लगौ गुहार।। 3322।।