अब अलि सुनत स्याम की बात।
नूतन नेह कियौ कुबिजा सन, तज्यौ पुरातन नात।।
परसत जाइ कपट स्वारथ तजि, कमल कोष निसि बासी।
भ्रमत भ्रमर सुख और सुमन सँग, मधुप एक इक रासी।।
इती दूरि मुख अवधि वदी निज, सोऊ भई न साँची।
कीजति कहा प्रतीति सँदेसनि, ‘सूर’ विरह को काँची।।3844।।