अपुनपौ आपुन ही मैं पायौ -सूरदास

सूरसागर

चतुर्थ स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल



अपुनपौ आपुन ही मैं पायौ।
सब्दहि सब्द भयौ उजिवारौं, सतगुरु भेद बतायौ।
ज्यौं कुरंग-नाभी कस्तूरी, ढूँढ़त फिरत भुलायौ।
फिरि चितयौ जब चेतन ह्वै करि अपने ही तन छायौ।
राजकुमारि कंठ-मनि-भूषन भ्रम भयो कहूँ गँवायौ।
दियौ बताइ और सखियनि तब, तनु कौ ताप नसायौ।
सपने माहिं नारि कौं भ्रम भयौ, बालक कहूँ हिरायौ।
जागि लख्यौ, ज्यौं को त्यौ ही है, ना कछु गयौ न आयौ।
सूरदास सकुझे की यह गति, मनहीं मन मुसुकायौ।
कहि न जाइ या सुख की महिमा, ज्यौं गूँगै गुर खायौ।। 13।।

इस पद के अनुवाद के लिए यहाँ क्लिक करें
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः