अति तप देखि कृपा हरि कीन्हौ।
तन की जनरि दूर भई सबकी, मिलि तरुनिनि सुख दीन्हौ।।
नवल किसोर ध्यान जुवतिनि मन, वहै प्रगट दरसायौ।
सकुचि गई अँग-बसन सम्हारतिं, भयौ सवनि मनभायौ।।
मन-मन कहति भयौ तप पूरन, आनँद उर न सनाई।
सूरदास-प्रभु लाज न आवति, जुवतिनि माँझ कन्हाई।।769।।