हौं बलि जाउँ छबीले लाल की।
धूसर धूरि घुटुरुवनि रेंगनि, बोलनि बचन रसाल की।
छिटकि रही चहुँ दिसि जु लटुरियौ, लटकन-लटकनि भाल की।
मोतिनि सहित नासिका नथुनी, कंठ-कमल-दल-माल की।
कछुक हाथ, कछु मुख माखन लै, चितवनि नैन बिसाल की।
सूरदास प्रभु-प्रेम मगन भई, ढिग न तजनि ब्रजबाल की।।105।।