हमरी सुरति विसारी वनवारी, हम सरबस दै हारी।
पै न भए अपने सनेह बस, सपनेहू गिरधारी।।
वै मोहन मधुकर समान सखि, अनगन वेलीचारी।
व्याकुल बिरह व्यापि दिन दिन हम, नीर जु नैननि ढारी।।
हम तन मन दै हाथ बिकानी, वै अति निठुर मुरारी।
'सूर' स्याम बहु रमनि रमन, हम इक व्रत, मदन प्रजारी।।2093।।