हँसत गोपाल नंद के आगैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोड़ी



हँसत गोपाल नंद के आगैं, नंद सरूप न जान्‍यौ।
निर्गुन ब्रह्म सगुन लीलाधर, सोई सुत करि मान्‍यौ।
एक समय पूजा कै अवसर, नंद समाधि लगाई।
सालिग्राम मेलि मुख भीतर, बैठि रहे अरगाई।
ध्‍यान बिसर्जन कियौ नंद जब, मूरत आगैं नाहीं।
कह्यौ गोपाल देवता कह भयौ यह बिसमय मन माहीं।
मुख तैं काढि़ तबै जदुनंदन, दियौ नंद कै हाथ।
सूरदास स्‍वामी सुख-सागर खेल रच्‍यौ ब्रज-नाथ।।263।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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