यहै मंत्र अक्रूर सौ, नृप रैनि बिचारि।
प्रात नंदसुत मारिहौ, यह कह्यौ प्रचारि।।
करि बिचारि जुग जाम लौ मदिरहि पधारे।
कह्यौ, जाहु अकूर सौ, भए आलस भारे।।
तुरत जाइ पलिका परयौ, पलकनि झपकानौ।
स्याम राम सुपने खरे, तहँ देखि डरानौ।।
अति कठोर दोउ काल से, भरम्यौ अति झझक्यौ।
जागि परयौ तहँ कोउ नही, जियही जिय ससक्यौ।।
चौकि परयौ सँग नारि के, रानी सब जागी।
उठी सबै अकुलाइ कै, तब बूझन लागी।।
महाराज झझके कहा, सपने कह ससके।
'सूर' अतिहिं व्याकुल भये, धर धर उर धरके।।2933।।