महर दियौ इक ग्वाल चलाइ। पठयौ कहि उपनंद बुलाइ।।
अरु आनौ वृषभानु बुलाइ। तुरत जाहु तुम करहु चँड़ाइ।।
यह सुनि तुरत गयौ तहं धाइ। नंद महर की कही सुनाइ।।
नैकु करहु अब जनि बिलमाइ। मोहिं कह्यौ सब देहु पठाइ।।
यह सुनि कै सब चले अतुराइ। मन मन सोच करत पछिताइ।।
कंस-काज जिय माँभ डराइ। राज-अंस-धन दियौ चलाइ।।
सूर नंद-गुह पहुँचे आइ। आदर करि बैठे नँदराइ।।887।।