भली भई नृप मान्यौ तुमहूँ।
लेखौ करैं जाइ कंसहि पै, चलैं संग तुम हमहूँ।।
अब लौं हम जानी घरही मैं, पहिरयौ है तुम दान।
काल्हि कह्यौ हो दान लेन कौं, नंद-महर की आन।।
तौ तुम कंस पठाए हौ ह्याँ, अब जानी यह बात।
सूर स्याम सुनि-सुनि यह बानी, भौंह मोरि मुसुकात।।1570।।