नृत्यत, अंग-आभूषन बाजत।
गति सुगंध सौ भाव दिखावत, इक तैं इक अति राजत।।
कहत न बनै रह्यौ रस ऐसौ, बरनत बरनि न जाइ।
जैसेइ बने स्याम, तैसीयै गोपी, छबि अधिकाइ।।
कंकन, चुरी, किंकिनी नुपूर, पैंजनि, बिछिया सोहति।
अद्भुत धुनि उपजति इनि मिलि कै, भ्रमि-भ्रमि इत-उत जोहति।।
सुनि-सुनि स्रवन रीझी मनहीं मन, राधा रास-रसज्ञा।
सूर स्याम सबके सुखदायक, लायक, गुननि गुनज्ञा।।1058।।