दोउ ढोटा गोकुलनायक मेरे।
काहें नंद छाडि तुम आए, प्रान जिवन सब केरे।।
तिनकै जात बहुत दुख पायौ, रोर परी इहिं खेरे।
गोसुत गाइ फिरत है दहुँ दिसि, वै न चरै तृन घेरे।।
प्रीति न करी राम दसरथ की, प्रान तजे बिनु हेरै।
‘सूर’ नंद सौ कहति जसोदा, प्रबल पाप सब मेरै।। 3131।।