दान लेहु घर जान देहु काहे कौं कान्ह देत हौ गारी।
जो कछु कहै करैं हम सोई, इहिं मारग आवैं बजमारी!
भली करी दधि माखन खायौ, चोली हार तोरि सब डारी।
जोबन दान कहूँ कोउ माँगत, यह सुनि-सुनि अति लाजनि मारी।।
होति अबार दूरि घर जैबौ, पैयां लगैं डरति हैं भारी।
सूर स्याम काहे कौं झगरौं, तुम सुजान हम ग्वारि गँवारी।।1463।।