तात वचन रघुनाथ माथ धरि, जब वन गौन कियौ।
मंत्री गयौ फिरावन रथ लै, रघुवर फेरि दियौ।
भुजा छुड़ाइ, तोरि तृन ज्यों हित, कियौ प्रभु निठुर हियौ।
यह सुनि भूप तुरत तनु त्याग्यौ, बिछुरन-ताप-तयौ।
सुरति-साल- ज्वायला उर अंतर, ज्यौंप पावकहिं पियौ।
इहिं विधि बिकल सकल पुरवासी, नाहिंन चहत जियौ।
पसु-पँछी तृन-कन त्याग्यौं अरु बालक पियौ न पयौ।
सूरदास रघुपति के बिछुरैं, मिथ्या जनम भयौ॥46॥