चित चितै तनय मुख ओर।
सकुचत सीत भीत जलरुह ज्यौं, तुव कर लकुट निरखि सखि घोर।
आनन ललित स्रवत जल सोभित, अरुन चपल लोचन की कोर।
कमल-नाल तैं मृदुल ललित भुज ऊखल बाँधे दाम कठोर।
लघु अपराध देखि बहु सोचति, निरदय हृदय बज्र सम तोर।
सूर कहा सुत पर इतनी रिस कहि इतनै कछु माखन–चोर।।357।।