चलि राधे हरि रसिक बुलाई।
कमल नयन कछु मरम कह्यौ है, मोहन बचन करन पुट लाई।।
अँग अँग सर्बस हरन लगी री, रचि बिरंचि तुव बनक बनाई।
अब जु पुकार करत तेरै तन, जिन जिनकी सब सोभ चतुराई।।
माँग उडू तब तरनि तर्यौना, तिलक भाल ससि की ससिताई।
भ्रकुटी सुरधनु, सुधा वचन बर, सुरपुर परी है मदन दुहाई।।
दाड़िम बज्र पंक्ति, पंकजदल, दामिनिघन, दुति रदन दुराई।
कंबु कपोत कंठ, निसिबासर बाहु बली करि कजलताई।।
उर भय भेष, सेष अंबर जनु, मनु छवि कटि मृगराज सुहाई।
हंस पुकार करत 'सूरज' प्रभु, दीन बंधु हौ लेन पठाई।।2436।।