क्यौं राधा फिरि मौन धरयौ री।
जैसै नउआ अंध झँवाबर, तैसैहि तै यह मौन करयौ री।।
बात नहीं मुख तै कहि आवति, की तेरी मन स्याम हरयौ री।
जानि नहीं पहिचानि न कबहुँ, देखत ही चित तिनहिं ढरयौ री।।
साँची बात कहौ तुम हमसौ, कहा सोच सो जियहिं परयौ री।
‘सूर’ स्याम तन देखि रही कह, लोचन इकटक तै न टरयौ री।।1773।।