कैसै री यह हरि करिहै।
राधा कौ तजिहै मनमोहन, कहा कंसदासी धरिहै।।
कहा कहति वह भइ पटरानी, वै राजा भए जाइ उहाँ।
मथुरा बसत लखत नहिं कोऊ, को आयौ, को रहत कहाँ।।
लाज बेचि कूबरी बिसाही, संग न छाँड़त एक घरी।
‘सूर’ जाहि परतीति न काहू, मन सिहात यह करनि करी।। 3146।।