कबहिं करन गयौ माखन चोरी।
जानै कहा कटाच्छ तिहारे, कमल नैन मेरौ इतनक सो री।
दै–दै दगा बुलाइ भवन मे भुज भरि भेंटति उरज-कठोरी।
उर नख चिह्न दिखावत डोलति, कान्ह चतुर भए तू अति भोरी?
आवति नित–प्रति उरहन कैं मिस, चितै रहति ज्यौं चंद चकोरी।
सूर सनेह ग्वालि मन अँटक्यौ अन्तर प्रीति जाति नहिं तोरी।।305।।